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RAJENDRA BHABAR

नौकरी: मजबूरी या जरूरत?

  नौकरी: मजबूरी या जरूरत? एक आम इंसान की कहानी जब बच्चा स्कूल जाता है, तो उससे अक्सर पूछा जाता है — "बड़े होकर क्या बनोगे?" कोई डॉक्टर कहता है, कोई इंजीनियर, कोई अफसर। पर बहुत कम बच्चे कहते हैं, “मैं नौकरी करूंगा।” असल में, नौकरी एक सपना नहीं, एक वास्तविकता है — कभी मजबूरी , कभी जरूरत , और कभी प्राप्ति का साधन । नौकरी करना: मजबूरी या जरूरत? मजबूरी तब बनती है , जब परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो। शिक्षा अधूरी रह जाए, कोई हुनर न हो, और पैसा कमाना ही एकमात्र लक्ष्य रह जाए,इस स्थिति में नौकरी करना मजबूरी बन जाती है । उस वक्त सिर्फ और सिर्फ नौकरी पर निर्भर रहता है । व्यक्ति फिर यह नहीं देखता नौकरी कैसी, है जैसी भी भी हो बस वह करना चाहता है ।  जरूरत तब बनती है , जब इंसान को जीवन की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करनी हों — रोटी, कपड़ा, मकान, बच्चों की पढ़ाई, बीमार माँ-बाप का इलाज इसके अलावा और भी जो जरूरतें होती है उनको पूरा करने के लिए नौकरी जरूरत बन जाती है । ऐसे हालत में व्यक्ति चाहकर भी नौकरी नहीं छोड़ सकता ।  कुछ के लिए नौकरी ना तो मजबूरी होती है ना ही जरूरत होती है ब...

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